Hindi Essay on “Holi Rango ka Tyohar”, “होली – रंगों का त्योहार”, Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

होली – रंगों का त्योहार

Holi Rango ka Tyohar

होली मानव-मन के उमंग-उल्लास को प्रकट करने वाला त्योहार है। यह पर्व । इस बात का सन्देश देता है कि एक धरती पर रहने वाले हम सभी लोग आप का वैरभाव तथा मनमुटाव भुलाकर प्रेम से मिल-जुलकर रहें तथा एक-दूसरे के सुख-दुःख के साथी बनें।

होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को आता है। इस दिन होली । ‘जलाई जाती है। इससे अगले दिन (धुलेण्डी को) होली खेली जाती है।

होली के दिन भारतीय किसान अपने खेतों से उगा हुआ नया अन्न घर में लाते हैं। होली के दिन इस नए गेहूं के बाल भूनकर खाए जाते हैं तथा सबको (आपस में) बाँटे भी जाते हैं।

होली का त्योहार मनाने के पीछे (होली जलाने को लेकर) प्रह्लाद की पौराणिक कथा कही जाती है। प्रह्लाद के पिता का नाम हिरण्याकश्यप था। वह आसुरी प्रवृत्ति की व्यक्ति था। अनेक लोगों पर उसका शासन चलता था। अपनी जनता के बीच खुद को ईश्वर घोषित कर रहा था और पूरे राज्य में यह ऐलान करवा दिया था कि जो कोई ईश्वर का नाम लेगा, उसे मृत्युदण्ड दिया जाएगा। अतः राजा के डर से लोग भगवान का नाम लेने में घबराते थे।

परन्तु हिरण्याकश्यप का पुत्र, प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। वह ईश्वर के प्रति सम्पूर्ण आस्थावान एवं श्रद्धावान था। पिता के बार-बार मना करने पर भी उसने ईश्वर का नाम लेना तथा प्रभु को याद करना नहीं छोड़ा। हिरण्याकश्यप के आदेश पर उस बालक को कठोर यातनाएँ दी गईं, उसे पहाड़ों से गिरवाया। गया, नदी में डलवाया गया, हाथियों के आग कुचलवाने का भी प्रयास किया। गया परन्तु भगवान की कृपा से उसका बाल भी बाँका न हुआ। पग-पग पर भगवान ने उसके जीवन की रक्षा की।

प्रह्लाद की कथा से हमको इस बात की शिक्षा मिलती है कि जो लोग सच्चे मन से ईश्वर को याद  करते हैं तथा उनकी शक्ति पर भरोसा करते हैं। भगवान उनकी मदद अवश्य करते हैं।

व प्रह्लाद के मुख से भगवान का नाम लेने का संस्कार छुड़ाते-छुड़ाते आयप हार गया। तो उसने अपनी बहिन होलिका को बुलवाया। होलिका म एक ऐसा रक्षा कवच था जिसे पहनकर वह आग में नहीं जल सकती थी।

अपने भाई हिरण्याकश्यप के कहने पर होलिका अपने भतीजे प्रह्लाद को लेकर जलती हुई चिता पर बैठ गई परन्तु भगवान की कृपा ऐसी हुई कि होलिका तो अपने कवच समेत जल गई और प्रह्लाद बच गए।

होलिका का जलना मानव मन की बुराइयों के नष्ट होने का सूचक है। जिस तरह होलिका चिता की आग से जली, उस तरह आज अनेक लोग चिन्ता की अग्नि लपटों में झुलस-झुलसकर जल रहे हैं परन्तु जिसका प्रह्लाद की तरह ईश्वर पर पक्का भरोसा है-भगवान सब प्रकार से उनके जीवन की रक्षा करने में लगे हुए हैं।

होलिका की आग से बचने की खुशी में ही हर वर्ष हमारे देश में होली जलाई जाती है। गली-मौहल्ले के लड़के घर-घर जाकर चन्दा इकट्ठा करते हैं। उस चन्दे से होली की लकड़ी आदि खरीदी जाती है, फिर पूर्णमासी की रात सूखी लकड़ियों और उपलों के ढेर में आग लगाई जाती हैं।

रात्रि को जब होली जलती है तो लोग खुशी से नाचते-झूमते होली की परिक्रमा लगाते हैं, फिर घर-घर होली की अग्नि जाती है और सभी घरों में लोग होली जलाकर खुशी प्रकट करते हैं और भगवान की महिमा के गीत गाते हैं।

आध्यात्मिक तौर पर सच्ची होली मनाने का अर्थ है अपने अन्दर काम, क्रोध आदि आसुरी वृत्तियों को जलाना अथवा योग-साधना की अग्नि से अपनी बुराइयों को भस्म करना। मानसिक बुराइयों से मुक्त होकर ही मानव सच्ची सुख शान्ति पा सकता है।

‘होली’ शब्द के अनेक अर्थ हैं।

‘होली’ का एक अर्थ ‘होली’ अर्थात् ‘बीत गई बात’ है। जो बात बीत चुकी, उसे बार-बार याद करने से क्या फायदा? पुरानी, बीती हुई, दुःखप्रद बात को याद न करना अथवा उसे सदा के लिए भूल जाना ही सच्ची होली मनाना है।

‘होली’ का दूसरा अर्थ ‘होली’ अर्थात् ‘आत्मा ईश्वर की हो गई है। जिस प्रकार भक्त प्रह्लाद मन वचन कर्म से प्रभु के हो गए थे, उसी प्रकार यदि हम । सच्चे मन से ईश्वर को स्वीकार कर लें तो यह भी सच्ची होली मनाना है।

अंग्रेजी का होली (Holy) शब्द ‘पवित्रता’ का अर्थ बताता है। अपने मन । को सदैव निर्मल और शान्त बनाए रखना ही होली मनाना (होली बनना) है।

होली का त्योहार सुप्त मन की कन्दराओं में पड़े ईष्र्या द्वेष जैसे निकृष्ट विचारों को निकाल फेंकने का हमें सुन्दर अवसर प्रदान करता है।

धुलेण्डी के दिन जब लोग एक-दूसरे पर रंग और गुलाल डालते हैं तो अपना सारा विरोध भाव भूल जाते हैं। दोपहरी तक होली खेलने के बाद लोग नहाते धोते हैं। साफ कपड़े पहनते हैं तथा घर में बने अनेक प्रकार के व्यंजनों (गुझिया, पापड़, अनासे, मीठे और नमकीन सेव, मिठाई आदि) का स्वाद लेते हैं।

इस दिन कवियों के महामूर्ख सम्मेलन होते हैं, मूर्ख राजों की सवारियाँ निकाली जाती हैं।

होली के दिन किसी प्रकार का अश्लील आचरण करना असभ्यता का सूचक है तथा इसे निषेध माना जाना चाहिए।

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