Hindi Essay on “Holi ka Tyohar”, “होली का त्यौहार”, for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

होली का त्यौहार

Holi ka Tyohar

Total Essay 4

निबंध नंबर :- 01

होली हिन्दुओं का एक विशेष त्योहार है। होली एक रंग-रंगीला त्योहार है। रंगों से सजा यह त्योहार बहुत ही खुशी का त्योहार है। यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

यह त्योहार पूरे देश में बिना धर्म, जाति, भेदभाव के खुशी से मनाया जाता है। होली मनाने की एक कथा है। इसी की याद में होली मनाई जाती है। एक राजा हिरण्यकश्यप था जो कि राक्षसों का राजा था। वह अपने पुत्र प्रहलाद को मारना चाहता था। एक दिन उसने उसे मारने के लिए अपनी बहन होलिका को, प्रहलाद की गोद में लेकर आग में बैठने को कहा। भगवान की कृपा से ईश्वर भक्त प्रहलाद तो बन गया परन्तु होलिका जल गई तभी। से एक दिन पहले होली जलाई जाती है। तथा अगले दिन रंग खेला जाता है।

इस त्योहार के एक सप्ताह पहले से ही गाँव के लोग तरह-तरह के गीत तथा नृत्य करते हैं। औरतें भी गीत गाती हैं तथा नाचती है। बच्चे तथा नौजवान अलग-अलग तरह के खेल खेलते हैं।

इस त्योहार के दिन विशेष खाना बनाया जाता है। रात को आदमी, औरतें तथा बच्चे होलिका दहन देखने जाते हैं।

अगले दिन लोग अपने मित्रों तथा रिश्तेदारों के घर जाते हैं उनको गुलाल तथा रंग लगाते हैं तथा एक-दूसरे पर पानी डालते हैं। बच्चों को यह त्योहार बहुत अच्छा लगता है। होली के बाद लोग नए कपड़े पहनते हैं व एक-दूसरे को मिठाइयाँ व शुभकामनाएँ देने जाते हैं।

होली मिलन व भाइचारे का त्योहार है। अत: इसे खुशी-खुशी बिना किसी भेदभाव के मनाना चाहिए।

 

निबंध नंबर:- 02

 

होली

Holi

होली का त्योहार संपूर्ण भारतवर्ष में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यह रंगों का त्योहार है। इस दिन सभी लोग-बच्चे, युवा और वृद्ध-एक दूसरे के गले मिल कर रंग और गुलाल लगाते हैं तथा मिठाइयाँ बाँटते हैं। इससे आपस में भाई-चारा बढ़ता है। यह त्योहार हमें आपस में मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा देता है।

यह त्योहार भारत में सदियों से मनाया जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने इस दिन भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को जाने से मारने की कोशिश की थी। क्योंकि प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद की विष्णु-भक्ति के अत्यंत विरोधी थे। उन्होंने अपने पुत्र प्रहलाद को जान से मरवाने के अनन्य प्रयास किए परंतु वह सफल नहीं हो सके। तब एक दिन उन्होंने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद के प्राण लेने के लिए कहा। होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। उसके पास ऐसी वरदानी चुनरी (दुपट्टा) थी जिसे ओढ़कर वह आग में भी सुरक्षित रह सकती थी। इसलिए वह अपने भाई हिरण्यकश्यप की बात मानकर प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गई

और हिरण्यकश्यप ने उसके चारों तरफ लकड़ियाँ रखकर आग लगा दी। लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद को बचा लिया और वरदानी होलिका उस आग में जलकर भस्म हो गई। तभी से होली का यह त्योहार मनाया जाने लगा।

यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी लोगों को चहिए कि वे होलिका दहन के रूप में अपने अन्दर की सभी बुराइयों को जलाकर नष्ट कर दें और अच्छाइयों को ग्रहण कर लें; जैसे भगवान विष्णु ने दुष्ट होलिका को नष्ट करके अपने भक्त प्रहलाद को बचाया था।

होलिका दहन फाल्गुन (मार्च) माह के अंतिम दिन पूर्णमासी को होता है। उसके अगले दिन हिन्दू नववर्ष के चैत्र माह में होली खेली जाती है। इसी दिन से वसंतोत्सव प्रारंभ होता है। लोग नाचते हैं, गाते हैं और अपने घरों में गुझिया तथा मिठाइयाँ बनाते हैं। सभी लोग मिठाइयों एक-दूसरे को बाँटकर खाते हैं। इसी माह में गेहूँ, चना आदि की नई फसल भी तैयार हो जाती है, इसलिए इस त्योहार की खुशी चौगुनी हो जाती।

निबंध नंबर :- 03

होली 

सम्पर्ण भारत में होली का त्योहार उत्साह और उल्लास से मनाया जाता दोली रंगों का त्योहार है। होली फागुन माह की पूर्णिमा को आता है। बोली शरद ऋतु के समाप्त होने और वसन्त ऋतु के आने का सूचक है। होली का त्योहार दो दिवसीय होता है। पहली रात को होलिका दहन होता है जिसे लोग हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन के रूप में मनाते हैं।

अगले दिन को धुलेंदी कहते हैं। इस दिन रंग खेला जाता है। भक्त प्रहलाद के बच जाने की खुशी में लोग हँसते गाते और रंग खेलते हैं। लोग सुबह से सफेद-सफेद कपड़े पहन कर रंग खेलने की तैयारी करते हैं। लाल, बैंगनी, गुलाबी, पीले पानी वाले रंग पिचकारियों से एक-दूसरे पर डाले जाते हैं। हरे, पीले, लाल गुलाल बड़े लोग एक-दूसरे को मलते हैं। लोग झुंडों में एकत्र हो कर शोर मचाते हुये गली-मुहल्लों में निकलते हैं। बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्रियाँ सभी होली के रंग में रंग जाते हैं और हुडदंग मचाते हुए अपने-अपने दोस्तों को रंगों से सराबोर कर देते हैं और गले मिलते है आने वाले मेहमानों का स्वागत मिठाइयों और गुजिया से किया जाता है।

यह वसन्त ऋतु का त्योहार है, अतः इस दिन नई मकई को भूना और खाया जाता है। इस दिन के बाद मौसम गर्म होने लगता है।

होली का त्योहार प्रहलाद से जुड़ा हुआ है। प्रहलाद भगवान का भार था। उसके पिता राजा हिरण्यकश्यप एक राक्षस थे जो चाहते थे कि उनके राज्य में ईश्वर का पूजन न किया जाये। केवल उनकी ही पूजा की जाये। जब वह प्रहलाद को ईश्वर की पूजा करने से नहीं रोक पाये तो उन्होंने उसे मारने के लिये बहुत-से प्रयास किये। मगर हर बार ईश्वर की कृपा से प्रहलाद बच जाता। एक दिन उनकी बहन होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई और अपनी चुन्नी ओढ़ ली ताकि वह वरदान प्राप्त होने के कारण आग से बच जाये और प्रहलाद जल जाये। मगर ईश्वर ने प्रहलाद को बचा लिया। उसी दिन से होलिका दहन किया जाता है।

होली के दिन होलिका दहन के द्वारा सभी बुराइयों, द्वेष एवं वैर भावना का दमन कर दिया जाता है।

पुरानी लड़ाइयाँ और दुश्मनियाँ भुला कर प्यार के रंगों से त्योहार मनाया जाता है।

कुछ लोग कीचड़, गोबर आदि का प्रयोग कर त्योहार को गन्दा करते हैं। गुब्बारों और रसायन युक्त रंगों का प्रयोग भी त्योहार की प्रतिष्ठा में कमी लाता है।

निबंध नंबर :- 04

होली

Holi

होली अपने साथ मस्ती और रंगीनी का आलम लेकर आती हैं। भारत में प्रति वर्ष अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं। ये ऋतुएँ अपने साथ कोई-न-कोई त्यौहार लेकर आती हैं। त्यौहार जीवन में मनोरंजन, आनंद और उल्लास उत्पन्न करते हैं। होली भी भारत का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह नृत्य, संगीत और रंगों का त्यौहार कहा जाता है। यह त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा का मनाया जाता है। इस समय बसंत ऋतु का साम्राज्य चारों ओर छाया रहता है। होली और दिवाली मात्र हिंदों बहार नहीं हैं, बल्कि अन्य समुदाय के लोग भ पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाते को यह थोडा हेर-फेर के साथ संसार के कई देशों में मनाया जाता है।

अन्य त्यौहारों के समान ही होली के साथ भी कुछ कथाएँ, जुड़ी हुई है। और घोर अत्याचारी तथा क्रूर राजा हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद को ह-तरह की यातनाएँ देता रहता था, क्योंकि वह स्वयं को भगवान मानता था, और पहलाद ईश्वर-भक्त था। जब वह किसी भी प्रकार से प्रह्लाद को न मार सका, तो उसने अपनी बहिन होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश करे। होलिका को वरदान मिला था, कि वह आग में नहीं जलेगी। होलिका प्रह्लाद को आग मे लेकर बैठ गई। होलिका तो आग में जलकर मर गई. परंतु प्रहलाद बच गया। बुराई करने वाले को उसका फल मिल गया था। इसलिए होली के त्यौहार पर लोग रात में होली जलाते हैं तथा उसमें तरह-तरह के गोबर के पुतले बनाकर डालते हैं। जो बुराई के अंत का प्रतीक है। अगले दिन इस त्यौहार पर सब एक दूसरे पर रंग घोल कर डालते हैं अथवा गुलाल-अबीर मलते हैं। ग्रामीण लोग नाच-गाकर इस उल्लास भरे त्यौहार को मनाते हैं। कृष्ण गोपियों की रास-लीला भी होती है। इसके बाद संध्या समय नए-नए कपड़े पहन कर लोग अपने मित्र गणों से मिलते है, एक दूसरे को मिठाई आदि खिलाते हैं और अपने स्नेह संबंधियों को पुनर्जीवित करते हैं। एक दूसरे के गले मिलते हैं, नाचते, गाते तथा खुशियां मनाते हैं। होली का हुडदंग मचाने वाले, टोलियाँ बनाकर घरों से बाहर निकल पड़ते हैं और जो भी सामने पड़ता है, उसी पर रंग डाल देते हैं। उनके डर से लोग खिसकने लगते हैं और कुछ घरों में छिपकर बैठ जाते हैं, परंत गाती-बजाती ये मंडलियाँ शहर में घमती रहती हैं। गांव में होली का रंग और भी नये प्रकार का होता है। विवाहित नव-यौवनाएँ हाथों में कठोर रस्सियां लेकर पुरूषों को मारती हैं। पुरूष उन पर गंदा पानी या कीचड़ तक डालते हैं। कुछ मुँह पर कालिख मल देते हैं और भी कई तरह के अभद्र व्यवहार करते हैं, जो कि अनुचित है। होली रंगों का त्यौहार है, अतः गोबर, कीचड़ अथवा कालिख का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त कुछ लोग इस दिन भांग, मदिरा आदि नशीली वस्तुओं का भी प्रयोग करते हैं, जिनके परिणाम कभी भी अच्छे नहीं होते। ऐसे शुभ पर्व को इन कार्यों से अपवित्र करना अशोभनीय है।

होली रंगों का त्यौहार ही नहीं बल्कि पारस्परिक प्रेम और राष्ट्रीय एकता का त्यौहार है। सिक्ख धर्म के अनुयायी भी इस दिन विशेष ‘होली’ मनाते हैं। सिक्खों का यह महत्वपूर्ण पर्व है। होली का पर्व हमें यह संदेश देता है, कि हम अपने पुराने भेदभाव और शत्रुता को भूलकर एक-दूसरे के गले मिलें और आपस मे स्नेह-प्रेम से घुल-मिलकर रहें। होलिकोत्सव तो हर प्राणी को स्नेह का पाठ सिखाता है इस दिन शत्रु भी अपनी शत्रुता भूलकर मित्र बन जाते हैं। इस कारण सब उत्सवों में यदि इसे “उत्सवों की रानी’ कहा जाए तो अत्यक्ति न होगी।

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