Hindi Essay on “Hindu Dharam”, “हिन्दू-धर्म”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

हिन्दू-धर्म

Hindu Dharam

हिन्दू-धर्म भारत का आदि सनातन धर्म है। सनातन का अर्थ है, सदाकाल से चला आया धर्म। प्रलय काल में भी जिसका विनाश नहीं होता। सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारतवर्ष के इस अति प्राचीन धर्म की स्थापना अन्य धर्मों की तरह मनुष्यों द्वारा नहीं हुई बल्कि स्वयं परमपिता परमात्मा अथवा ईश्वर के द्वारा हुई है। गीता वचन के अनुसार-

यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

गीता में भगवान अर्जुन से कहते हैं कि जब-जब भारतदेश में धर्म की अति ग्लानि होती है तब-तब मैं पुनः सत्यधर्म की स्थापना के लिए, साधु-पुरुषों के उद्धार के लिए तथा दुष्ट-प्रकृति के लोगों के विनाश के लिए धरा पर अवतरित होता हूँ।

भारत के आदि सनातन धर्म का प्राचीन नाम ‘हिन्दू’ नहीं है। ‘हिन्दू’ नाम तो उस सनातन धर्म का बहुत बाद में पड़ा है। ठीक उसी प्रकार जैसे हमारे भारतदेश का नाम बहुत बाद में हिन्दुस्तान पड़ा। इतिहास के अनुसार भारत के सिन्धु तट पर रहने वाले लोगों को ईरान और फारस के विदेशी व्यापारी ‘हिन्दू’ कहकर पुकारते थे। सिन्धु नदी को भी ‘हिन्दू’ नदी कहते थे। अरबी भाषा में ‘स’ अक्षर ‘ह’ में बदल जाता है। जैसे कि सप्ताह को अरबी या उर्दू भाषा में ‘हफ्ता’ कहते है। इसी तरह ‘सिन्धू’ को अरबी लोग ‘हिन्दू’ कहा करते थे।

असल में हिन्दू शब्द किसी धर्म का सूचक शब्द नहीं बल्कि एक स्थान षि में रहने वाले लोगों का सूचक शब्द है। आजकल लोग इसे एक सम्प्रदाय विशेष के अर्थ में प्रयोग करते हैं।

‘हिन्दू-धर्म’ किसी मत या सम्प्रदाय का नाम नहीं बल्कि मानव की उदारवादी धारणाओं का नाम है।

महात्मा गाँधी लिखते हैं

“मैं अपने को सनातनी हिन्दू कहता हूँ क्योंकि-

  1. मैं वेदों, उपनिषदों, पुराणों और हिन्दू धर्मग्रन्थों के नाम से प्रचलित सारे साहित्य में विश्वास रखता हूँ और इसलिए अवतारों और पुनर्जन्ममें भी।

  1. मैं वर्णाश्रम धर्म के उस रूप में विश्वास रखता हूँ जो मेरे विचार से विशुद्ध वैदिक है, लेकिन उसके आजकल के लोक प्रचलित और स्थूल रूप में मेरा विश्वास नहीं।

  1. मैं रक्षा में उसके लोक प्रचलित रूप से कहीं अधिक व्यापक रूप में विश्वास करता हूँ।

  1. मैं मूर्तिपूजा में अविश्वास नहीं करता।

स्वामी विवेकानन्द हिन्दू धर्म के सम्बन्ध में कहते हैं

“…मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व महसूस करता हैं, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी है। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं।”

 

आचार्य विनोबाभावे लिखते हैं-

“मुझे हिन्दू धर्म इसलिए प्रिय है, क्योंकि इसमें असंख्य सत्पुरुष-वामदेव, बुद्धदेव आदि हैं। इस धर्म में अनेक सामाजिक एवं वैयक्तिक संस्थाओं, संस्कार और आचार-यज्ञ, आश्रम तथा गोरक्षण आदि का विचार किया गया है। हिन्दू धर्म का शाश्वत नीति तत्त्व सत्य और अहिंसा आदि है। इसमें आत्मनिग्रह का वैज्ञानिक उपाय योगविद्या को बताया गया है। हिन्दू धर्म का ‘कर्मयोग’ जीवन और धर्म की एकता का नाम है। इस धर्म में वेद, उपनिषद् और गीता आदि अनुभव-सिद्ध साहित्य है।’

हिन्दू धर्म में अध्यात्म की तीन सीढ़ियाँ (श्रेणियाँ) मानी गई हैं

1) भक्ति, (2) ज्ञान, तथा (3) वैराग्य । ईश्वर में अपना मन लगाने के लिए देवी-देवताओं की पार्थिव प्रतिभाओं की पूजा-आराधना करता है। भक्ति से ऊँची सीढ़ी ज्ञान की है। ज्ञान में निराकार ईश्वर के प्रति साधना को महत्त्व दिया जाता है। जब मनुष्य को ज्ञान मिल जाता है तो उसे नश्वर जगत् से, नश्वर शरीर से तथा नश्वर चीजों से वैराग्य आने लगता है।

हिन्दूधर्म के प्राचीन चार आश्रम विशेष प्रसिद्ध हैं-

(1) ब्रह्मचर्याश्रम, (2)गहस्थाश्रम, (3) वानप्रस्थ आश्रम तथा (4) संन्यास आश्रम।

ब्रह्मचर्य-आश्रम बचपन से लेकर 25 वर्ष तक की आयु का माना जाता है। इस आयु तक व्यक्ति पढ़-लिखकर योग्य बनता है। मन, वचन, कर्म की पवित्रता तथा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना इस आश्रम का मुख्य लक्षण माना जाता है। ब्रह्मचर्य आश्रम के बाद गृहस्थ-आश्रम आता है जो कि 25 वर्ष से लेकर 50 वर्ष की आयु तक होता है। इस आश्रम में रहकर व्यक्ति शादी विवाह करता है, बच्चे पैदा करके उनका पालन-पोषण करता है तथा माता-पिता के प्रति अपना दायित्व निभाता है। तत्पश्चात् वानप्रस्थ आश्रम आता है जो कि 50 वर्ष से लेकर 75 वर्ष तक की आयु का होता है। इस आश्रम में आदमी अपनी घर-गृहस्थी को छोड़कर जंगल में चला जाता है तथा तीर्थ यात्रा आदि करता है। सारे पारिवारिक दायित्वों से वह मुक्त हो जाता है तथा अपना ध्यान ईश्वर में लगाता है। चौथा आश्रम (संन्याश्रम) 75 से लेकर 100 वर्ष तक की आयु अथवा मृत्यु-पर्यन्त होता है।

हिन्दू धर्म में धर्म, नैतिकता एवं प्रथाओं को मुख्य स्थान दिया गया है। ये तीनों वस्तुएँ सामाजिक नियन्त्रण के साधन हैं।

हिन्दू धर्म की प्राणवत्ता, अजर-अमरता का रहस्य है-उसकी उदार प्रकृति और समन्वय प्रवृत्ति । जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि सम्प्रदाय हिन्दू धर्म की ही शाखाएँ हैं। वर्तमान जीवन मूल्यों के लिए हिन्दू धर्म सब प्रकार से कल्याणकारी एवं मंगलमय है। हिन्दु धर्म में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि चार पुरुषार्थों को स्थान दिया गया है। इसके अलावा हिन्दू धर्म कर्म सिद्धान्त एवं पुनर्जन्म में भी विश्वास रखता है। कर्म सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य को उसके अच्छे या बुरे कर्मों का फल एक न एक दिन अवश्य मिलता है और पुनर्जन्म की मान्यता के अनुसार आदमी का अगला जन्म अवश्य होता है। जीवन में प्राप्त दुःख-क्लेश पूर्व जन्म के बुरे कर्मों का तथा जीवन के सुख-साधन पूर्व जन्मों के श्रेष्ठ कर्मों का परिणाम होते हैं।”

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