हेमिस गुंपा का मेला – लद्दाख
Hemis Monastery ka Mela – Ladakh
लद्दाख बर्फीला प्रदेश है। गर्मी के दिनों में भी वहाँ बहुत ठंड रहती है। शीत के दिनों में तो इतनी अधिक ठंड पड़ती है कि शरीर के किसी भी अंग को जरा भी खुला रखना बहुत कठिन होता है। पानी में हाथ डालने पर उगलिया कटने सी लगती है। पेड़ पौधे बर्फ से झुलस जाते हैं। शीत की अधिकता के कारण जाड़े के दिनों में खेत वीरान पड़े रहते हैं।
पर फिर भी अनेक लोग लद्दाख में रहते हैं। कठोर परिश्रम करके जीवन व्यतीत करते हैं। वे शीत से युद्ध करते हैं। बर्फीली धरती से भी भोजन प्राप्त करते हैं। पशुओं को भी पालते है। प्रकृति से लड़ते हुए आनन्दमय जीवन बिताते हैं।
लद्दाख में बहुत से मेले लगते हैं और कई पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाये जाते है। प्रत्येक मेला और पर्व नृत्य तथा गीत के साथ आरंभ होता है और नृत्य तथा गीत के साथ ही सभाप्त होता है। मेले में सभी स्त्री-पुरुष ‘मिलकर नाचते और गाते हैं। लामा लोग एक प्रसिद्ध नृत्य करते है। जिसे पिशाच नृत्य कहते हैं। वे तरह-तरह के जानवरों के मुखौटे मुख पर लगाकर और हाथ में तलवार लेकर नाचते और गाते हैं।
अधिकतर मेले जनवरी में लगा करते हैं पर गुंपा का मेला फरवरी में लगता है। लद्दाख का यह सब से बड़ा मेला है। इस मेले में हर एक जाति और संप्रदाय के लद्दाखी गाते है। सम्मिलित होते है। सभी लोग रंग-बिरंगे वस्त्रों से सज्जित होते हैं। खूब नाचते और गुंपा के मेले में नृत्य और गीतों की अच्छी बहार देखने को मिलती है। लद्दाखीवाद्यों की धनियों से वातावरण गूंज उठता है। मेले में लद्दाख के लोग ही नहीं, बहार के लोग भी आते हैं।
उस बर्फीली धरती पर मानवीय एकता का ऐसा सतरंगा चित्र उभरता है। कि देखने योग्य होता है। एक विदेशी पर्यटक ने गुम्पे के मेल पर लिखा है। मैने गुम्पे के मेले में जब लद्दाखी स्त्रियों के कंठो से निकले गीतों की आवाज़ के साथ ही उनके पैरों की थिरकन देखी, तो मुझे ऐसा लगा कि, मैं स्वर्ग में हैं।
सचमुच आज के नये जीवन से अपरिचित लद्दाख के लोग अपने नृत्यों और गीतों के कारण ही स्वर्ग के प्रतिनिधि-से ज्ञात होते हैं।