ग्रीष्म ऋतु
Grishma Ritu
Essay # 1
भूमिका- भारतवर्ष को ऋतुओं का देश कहा जाता है। यहाँ लगभग 2 मासके पश्चात् नयी ऋतु आ जाती है। यह ऋतु परिवर्तन कुदरत का नियम है। मानव का यह स्वभाव रहा है कि वह जीवन में आन्नद पाने को लिए कुछ नवीनता चाहता है। यही बात ऋतुओं के बारे में भी कही जाती है- ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शीत ऋतु, पतझड़, बसन्त आदि कुछ महत्त्वपूर्ण ऋतुएं हैं। वैसे तो सभी ऋतुओं की अपनी-अपनी महानता है। इन सब में ग्रीष्म ऋतु हमें काफी महत्त्वपूर्ण मानी गई है। ग्रीष्म ऋतु में तपी हुई भूमि वर्षा ऋतु में हरी-भरी फसलें प्रदान करती है। कहा जाता है कि जितनी अधिक गर्मी पड़ेगी उतनी अधिक वर्षा होगी।
ऋतु का आगमन- वसन्त के बीतते-बीतते ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। सूर्य देवता जैसे ही उदय होते हैं तो गर्मी बढ़ने लगती है। मन्द-मन्द चलने वाली शीतल वायु के स्थान पर शरीर को सुलझाने वाली लुएं चलती लगती हैं। गर्मी के प्रहार से पृथ्वी जलने लगतीहै, नदियां, तालाब, जोहड़ सूख जाते हैं। तालाबों में कमल के फल मुरझा जाते हैं और पशु पक्षी पानी की चाहत में इधर-उधर भटकते हैं। गर्मियों में दिन बढ़े होते हैं और रातें छोटी होती हैं। जून, जुलाई के महीनों में गर्मी अपने यौवन में होती है। घर से बाहर निकलना कठिन हो जाता है। दोपहर के समय में गर्मी इतनी तेज हो जाती है कि प्राणी मात्र के लिए उसे सहन करना कठिन हो जाता है। ऐसा लगता है कि माना चारों तरफ आग बरस रही है। जीव जन्त भी छाया ढूंढते फिरते हैं।
गर्मी का प्रभाव- तेज गर्मी का प्रभाव प्राणी मात्र पर अवश्य पड़ता है। शरीर में स्फूर्ति के स्थान पर आलस्य छाया रहता है। परिश्रम न भी करे तो भी शरीर पसीने से तर रहता है। इस ऋतु में यात्रा करना भी कठिन हो जाता है। प्यास और पसीना इस ऋतु के दो अभिशाप है। मनुष्य को न तो रात को चैन मिलता न ही दिन में। अमीर लोग तो रात को या दिन को कुलरों या एयर कण्डशिण्रों का सहारा लेते हैं। गरीब लोग तो पंखों का सहारा लेकर भी समय व्यतीत करते हैं। पंखों की हवा भी गर्म होती है। थोड़ी-थोड़ी देर बात प्यास को बुझाने के लिए पानी पिया जाता है। पसीना पोंछने के लिए रुमाल या तोलिया तो हाथ में ही रखना पड़ता है।
गर्मी से बचने के ढंग- गर्मी के बचाव के लिए मनुष्य कई प्रकार के उपाय करता है। प्रकृति ने गर्मी से बचने के लिए मानव को अनेक साधन उपलब्ध करवाए हैं। गर्मी के सभी फल हमें गर्मी से राहत देते हैं। गर्मी के प्रकोप से बचने के लिए दोपहर से पहले-पहले अपने काम निपटा लेना चाहिए और दोपहर के समय पंखों के नीचे या फिर किसी छायादार वृक्ष के नीचे बैठकर समय व्यतीत करना चाहिए) ज्यादा गर्मी पड़ने पर स्कूलों या कॉलेजों में भी अवकाश करदिया जाता है। अधिक गर्मी के समय घर से बाहर निकलते समय सिर पर या तो कपड़ा रखे या फिर छाते का प्रयोग करे। बाहर से आकर शीघ्र ही पानी नहीं पीना चाहिए। खाली पेट बाहर धूप में नहीं जाना चाहिए। अमीर लोग तो गर्मी से बचने के लिए पहाडी क्षेत्रों में चले जाते हैं।
लाभ- गर्मी से हानियां तो होती ही हैं लेकिन वहाँ बहत से लाभ भी होते हैं। गर्मी के कारण ही फसलें पक कर तैयार होती हैं। गेहूं की कटाई अप्रैल के महीने के पकने पर की जाती है। ग्रीष्मकाल में फलों में मिठास भर जाती है। गर्मी के कारण ही जहरीले किटाणु मरते हैं। अधिक गर्मी ही वर्षा का कारण बनती है। वर्षा बिना कृषि नहीं हो सकती। गर्मी ऋतु का आना एक प्रकृति का नियम है। गर्मी के दिनों में पसीना आने पर शरीर का रोम-रोम खुल जाता है। शरीर चुस्त रहता है। हमारे स्वास्थ्य और जीवन के विकास के लिए ग्रीष्म ऋतु का होता नितान्त आवश्यक है। जिन देशों में वर्षा नहीं होती वहां अन्न की कमी रहती है।
उपसंहार- ग्रीष्म ऋतु प्रकृति का उग्र रूप होती है। ग्रीष्म ऋत से कष्ट सहन करने की क्षमता आती है। ग्रीष्म ऋतु में गमी को सहन करने के बाद वर्षा ऋतु का आगमन होता है तो मानव सःख की सास लेता है। दु:ख के बाद। हा सुख मिलता है। यह ऋतु हमें शिक्षा देती है कि द:खों में घबराना नहीं चाहिए और सःखों की कामना करनी चाहिए। जैसे गर्मी के बाद वर्षा का आगमन होता है उसी प्रकार से द:ख के बाद सःख का आगमन होता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि ग्रीष्म ऋतु में अनेक हानियां और लाभ हैं।
Essay # 2
ग्रीष्म ऋतु
The Summer Season
बसंत ऋतु की समाप्ति पर ग्रीष्म ऋतु का आरंभ होता है । इस ऋतु में सूर्य देवता उगते ही अपनी तीक्ष्ण किरणें बरसाना आरंभ कर देते हैं । जल और थल गरम होने लगता है। मनुष्य और पशु-पक्षी ठंडी छाया या अपने आवासों में रहना चाहते हैं । बार-बार प्यास लगती है । घर के तापमान को कम करने के लिए कूलर और ए. सी. का सहारा लिया जाता है । शीतल जल से स्नान करना अच्छा लगता है। दोपहर के समय गर्मी बहुत बढ़ जाती है। पेड़-पौधे कुम्हलाने लगते हैं । लू के थपेड़े जीव समुदाय को झुलसाने लगते हैं। ग्रीष्म ऋतु में जल का अभाव हो जाता है । नदियों और सरोवरों का जल सूख जाता है । पशु-पक्षी बैचैनी से जल की तलाश करते देखे जाते हैं । शाम के समय थोड़ी राहत मिलती है । परन्तु हवा न चल रही हो तो उमस बढ़ जाती है । तब रात भी बड़ी बेचैनी से कटती है । ऐसे कष्टदायक दिनों में लोग ठंडा शरबत तथा बाजारू शीतल पेय पीना पसंद करते हैं। खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज जैसे रसीले फल कुछ राहत देते हैं परन्तु पूरी राहत तो वर्षा होने के बाद ही मिल पाती है।