Hindi Essay on “Gandhi Jayanti”, “गाँधी जयन्ती”, Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

गाँधी जयन्ती

Gandhi Jayanti

निबंध नंबर :- 01

दो अक्टूबर महात्मा गाँधीजी का जन्म-दिवस है। वर्ष 1869 में 2 अक्टूबर के दिन इस महापुरुष का जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम ‘मोहनदास कर्मचन्द गाँधी’ था। मोहनदास इनके बचपन का नाम था और कर्मचन्द गाँधी इनके पिता का नाम था। ये गुजरात में पैदा हुए थे।

गाँधीजी एक मध्यम परिवार में पैदा हुए थे। बचपन में ये अपने मंझले भाई की देखा देखी कुसंग में पड़ने लगे और बीड़ी आदि पीने लगे थे परन्तु बाद में इनको इस प्रकार के कार्यों से बड़ी आत्मग्लानि हुई और इन्होंने जीवन-भर कुसंग तथा बुरे व्यसनों से दूर रहने की कसम खा ली।

कानून इनके अध्ययन का प्रिय विषय था। जब ये बैरिस्टरी (वकालत) की पढ़ाई पूरी करने के लिए विदेश जा रहे थे तो इनकी माँ ने इन्हें तीन प्रतिज्ञाएँ करवाई थीं:-

(1) मैं विदेश में मदिरा का सेवन नहीं करूंगा।

2) मदिरा से दूर रहूँगा।

(3) पराई स्त्री को बुरी नजरों से नहीं देखूगा।

माँ को डर था कि अंग्रेज लोगों की तरह उनका पुत्र उनके समाज के बीच रहकर इन चीजों का सेवन न करने लगे। उस समय भारत पर अंग्रेजों का शासन था।

दक्षिणी अफ्रीका में रहकर गाँधीजी ने सत्य के सम्बन्ध में अनेक प्रयोग किए। उन्हें ‘सत्य और अहिंसा किसी भी अन्याय का प्रतिकार करने के लिए दो बड़े अस्त्र प्रतीत हुए। जीवन-भर वे सत्य की लड़ाई लड़ते रहे।

भारतमाता को अंग्रेजों की कैद से मुक्ति दिलाने के लिए गाँधीजी ने ‘सत्य और अहिंसा के सूक्ष्म हथियारों का ही इस्तेमाल किया। उनके अन्दर नेतृत्व करने की अद्भुत क्षमता थी। भारत को स्वतन्त्र कराने की उनके निम्न प्रयास इतिहास में सदैव याद रखे जाएँगेः-

(1) कांग्रेस पार्टी के माध्यम से स्वतन्त्रता आन्दोलन का नेतृत्व

(2) सविनय अवज्ञा आन्दोलन

(3) असहयोग-आन्दोलन

(4) विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का आन्दोलन

(5) रौलेट एक्ट नामक काले कानून का विरोध

(6) अंग्रेजों का बनाया नमक-कानून तोड़ना

(7) हरिजन एवार्ड को लौटाने का आन्दोलन तथा

(8) सन् 1942 का ‘करो या मरो’ आन्दोलन आदि।

इन सभी आन्दोलनों का नेतृत्व गाँधीजी ने ही किया था। लोग उनके नेतृत्व में अंग्रेजों की जेलों में गए, अंग्रेजों की लाठियाँ और गोलियाँ खाई तथा गाँधीजी | के अहिंसात्मक आन्दोलन को गति देने के लिए अपनी जान की भी चिन्ता नहीं की।

गाँधीजी ने भारतमाता की सेवा के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। वे अपने हाथ से चरखा चलाते थे और अपने हाथ से कते हुए सूत की लँगोटी पहनते थे। उनका चरखा अहिंसा का प्रतीक था। वे चरखा वृत्ति द्वारा देश में स्वरोजगार और स्वराज्य स्थापित करना चाहते थे।

गाँधीजी बीसवीं सदी के महान सन्त थे। वे त्याग, सादगी, संयम, सत्य और सहिष्णुता की प्रतिमुर्ति थे। राष्ट्र की आजादी के लिए उन्होंने खुद भी अंग्रेजों की अनेक लाठियाँ सहीं तथा जेल भी गए।

गाँधीजी हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। इन दोनों धर्मों के लोगों के बीच एकता के लिए वे अपने जीवन के अन्तिम समय तक प्रयास करते रहे। उनको जब भी भारत की एकता और अखण्डता टूटती हुई दिखाई देती थी। वे आमरण अनशन करके सबको अपने सिद्धान्तों पर झुकने के लिए मजबूर कर देते थे।

15 अगस्त सन् 1947 को भारत देश दो टुकड़ों में बँट गया। जगह-जगह सामुदायिक दंगे-फसाद होने लगे। यह सब देखकर गाँधीजी की आत्मा को बड़ा कष्ट पहुँचा। उन्होंने घोषणा कर दी कि जब तक ये दंगे-फसाद नहीं रुक जाते वे न तो कुछ खाएँगे और न पिएँगे। गाँधीजी के इस प्रयास से देश के अनेक हिस्सों में शान्ति का माहौल फिर से बनने लगा, लोग अन्य धर्म के लोगों को अपने दिल में जगह देने लगे।

गाँधीजी शराब को मनुष्य के शरीर और आत्मा का दुश्मन बताते थे। उनके नेतृत्व से देश के हजारों स्त्री-पुरुषों ने शराब की दुकानें बन्द करवाने के लिए धरना दिया तथा शराब के आदी लोगों को शराब न पीने का व्रत लेने पर मजबर करा दिया।

गाँधीजी के हृदय में सभी धर्म तथा जातियों के लोगों के लिए एक जैसा आदर भाव था। वे हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि सभी प्रकार के लोगों को समान रूप से चाहते थे। गाँधीजी हरिजनों को हिन्दुओं से पृथक् नहीं मानते थे तथा वे उन्हें अछूत या अस्पृश्य भी नहीं समझते थे। वे हरिजनों को हिन्दू समाज में समानता का दर्जा दिलाना चाहते थे। सन् 1930 ई. में जब अंग्रेज सरकार ने हरिजनों को हिन्दुओं से पृथक् करने के लिए ‘हरिजन पुरस्कार’ देने की घोषणा की, तब गाँधीजी जेल में थे उन्होंने इस पुरस्कार के विरोध में 21 दिन के उपवास की घोषणा कर दी। हारकर अंग्रेज सरकार को यह पुरस्कार वापिस लेना पड़ा।

हरिजन कल्याण के लिए गाँधीजी ने ‘हरिजन सेवा संघ की स्थापना की। हरिजन बस्ती में रहकर वे ‘अछूतोद्धार’ का कार्यक्रम चलाने लगे। उन्होंने भारतवासियों को स्वदेशी वस्तुओं से प्रेम करना सिखलाया तथा विदेशी वस्त्रों की होली जलवाई। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने ‘हिन्दी भाषा प्रचार समिति तथा ‘दक्षिण हिन्दी प्रचार सभा’ जैसे संस्थानों की स्थापना की।

गाँधीजी के प्रोत्साहन से लाखों लोगों ने हिन्दी सीखी। वे सच्चे अर्थों में ‘राष्ट्र के पिता थे। उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में गाँधी मेलों का आयोजन किया। जाता है तथा दिल्ली के राजघाट आदि स्थानों पर गाँधी-भजन, कीर्तन के विशेष कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं।

 

निबंध नंबर :- 02

 

गाँधी जयंती – 2 अक्तूबर

Gandhi Jayanti – 2 October 

 

सत्य और अहिंसा की अलख जगाने वाले राष्ट्रपिता मोहनचंद करमचंद गाँधी का जन्म पोरबंदर (गुजरात) में 2 अक्तूबर, 1869 को हुआ था। आज गाँधी जयंती केवल भारत में ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व में मनाई जाती है। अब गाँधी जयंती अंतर्राष्ट्रीय गाँधी जयंती हो गई है।

गाँधीजी 125 वर्ष तक जीना चाहते थे। इतनी लंबी आयु की इच्छा के पीछे उनका लक्ष्य वह सब हासिल करना था जो वह स्वराज से पूर्व नहीं कर सके थे। उनके लिए स्वराज उनके सक्रिय जीवन के अधिकांश वर्षों की अवधि में एक ‘साध्य’ था जबकि वह सदैव एक बेहतर समाज की स्थापना के लिए ‘साधन’ के रूप में प्राप्त करना चाहते थे। देश को जब ‘स्वराज’ प्राप्त हुआ उस समय गाँधीजी लगभग 77 वर्ष के थे। और जब प्रथम राष्ट्रीय स्वाधीनता दिवस मनाने के लिए ऐतिहासिक लालकिले का प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराया जा रहा था, तब गाँधीजी राजधानी बहुत दूर सांप्रदायिक सदभावना की स्थापना के लिए कठिन संघर्ष कर रह थे। केवल छ: माह बाद ही गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। परंतु वह तो 125 वर्ष तक जीना चाहते थे।

उन्होंने कहा था कि वह स्वराज के द्वारा देश को प्रत्येक नागरिक के रहने के लिए एक बेहतर स्थान बनाएगे। परंतु गाँधीजी यह कैसे कर सकते थे, यह प्रश्न उन सभी लोगों को उद्विग्न कर रहा होगा जो आज उन्हें समझना चाहते हैं। गाँधीजी को समझने के लिए कुछ मूलभूत बातों को समझना होगा और वे हैं: – (1) ‘साध्य’ और ‘साधन’ विनिमेय हैं। (2) साधन हमेशा शुद्ध होने चाहिए। (3) समाज की मूल इकाई व्यक्ति है। (4) देश के आर्थिक विकास के लिए मूल इकाई गाँव होना चाहिए, और (5) किसी भी विकासमूलक गतिविधि की दिशा में उठाए गए कदम का मापदंड सत्य और अहिंसा है।

गाँधीजी चाहते थे कि हम जो कुछ भी प्राप्त करें, उसे सत्य के निकट होना चाहिए और उसे सदैव अहिंसा के द्वारा प्राप्त किया जाना चाहिए। उनका सत्याग्रह केवल एक ऐसा दृष्टान्त है जिसे उन्होंने सत्य को एक साधन के रूप में प्रयुक्त किया। मानवता के इतिहास में इससे पहले कभी भी अहिंसा, सच्चाई, भाईचारा, स्नेह और न्याय जैसे मूल्यों को किसी ने इतना महत्व नहीं दिया, परंतु महात्मा गाँधी ने इन्हीं मानवीय सद्गुणों द्वारा भारत को स्वतंत्रता दिलाई और दुनिया में एक नवीन आदर्श की स्थापना की।

इसीलिए आज गाँधीजी के उपरोक्त सद्गुणों को पूरी दुनिया स्वीकार रही है और उनके जन्म-दिवस को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मना। रही है तथा भारत के महान सपूत को शत्-शत् नमन कर रही है।

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