दहेज-प्रथा की समस्या
Dahej Pratha ki Samasya
“दहेज’ को विभिन्न पाश्चात्य विद्वानों ने अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया है। यथा-
(1) वेवस्टर कहते हैं।
दहेज वह धन, वस्तु अथवा सम्पत्ति है, जो एक स्त्री विवाह में
अपने पति के लिए लाती है।”
(2) फेयर वाइल्ड के अनुसार
“दहेज वह धन या सम्पत्ति है, जो विवाह के अवसर पर लड़की के माता-पिता या अन्य निकट सम्बन्धियों द्वारा दी जाती है।”
(3) मैक्स रेडिन लिखते हैं–
साधारण दहेज वह सम्पत्ति है, जिसे एक पुरुष विवाह के समय अपनी पत्नी या उसके परिवार से प्राप्त करता है।”
इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में दहेज को इस प्रकार परिभाषित किया। गया है-
“दहेज वह धन है, जो एक स्त्री विवाह के समय अपने साथ लाती है। अथवा उसे दिया जाता है।“
दहेज निरोधक अधिनियम 1960 के अनुसार दहेज की प्रामाणिक व्याख्या इस प्रकार दी जाती है-
दहेज का अर्थ कोई ऐसी सम्पत्ति या मूल्यवान निधि है जो–
- विवाह करने वाले दोनों पक्षों में से एक पक्ष से दूसरे पक्ष को अथवा
- विवाह में भाग लेने वाले दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति ने किसी दूसरे पक्ष अथवा उसके किसी व्यक्ति को विवाह के समय, विवाह से पहले या विवाह के किया हो।”बाद विवाह की आवश्यक शर्त के रूप में दी हो अथवा देना स्वीकार किया हो
जब किसी जाति या समाज में किसी विशेष अवसर पर कोई कार्य विशेष ढंग से किया जाता है तो वह प्रथा बन जाता है। प्रथा समाज की परिपाटी का उत्कृष्ट रूप है। परिपाटी का यह रूप सारे समाज या देश से मान्य हो जाता है तथा परिपाटी (प्रथा) के उल्लंघन को अनुचित या दूषित माना जाता है।
प्राचीन काल में दहेज एक सात्त्विक प्रथा थी। माता-पिता अपनी कन्या को विवाह के पश्चात् उसके पति के घर खाली हाथ भेजना अच्छा नहीं समझते थे इसलिए वे वर-वधू के कल्याण के लिए धन सम्पत्ति तथा उपहार कन्या के साथ भेजते थे। माता-पिता अपनी पुत्री एवं दामाद की भलाई के लिए जो कुछ भी देते थे, उसे उनका त्याग माना जाता था। कन्या विवाह के पश्चात् अपने साथ वस्त्राभूषण, बर्तन आदि पति के घर ले जाती थी। पार्वती के विवाह में उनके पिता हिमाचल ने उन्हें बहुत सारा दान दहेज देकर विदा किया था। इसी प्रकार से सीता के विवाह में उनके पिता राजा जनक ने उन्हें बहुत सारा दहेज देकर विदा किया था। जनक ने दहेज में कई लाख गाएँ, अच्छी-अच्छी कई कालीनें, करोड़ों रेशमी और सूती वस्त्र, गहनों से सजे हाथी, घोड़े, रथ, पैदल तथा सैनिक भेंट में दिए थे। रामायण के अनुसार राजा जनक ने अपनी पुत्रियों की शादी में उनकी सहेली के रूप में सौ-सौ कन्याएँ तथा उत्तम दास-दासियाँ अर्पित की थीं। इसके अलावा राजा जनक ने सबके लिए एक करोड़ स्वर्ण मुद्रा, रजत मुद्रा, मोती तथा मूंगे भी दिए।
प्रत्येक माता-पिता की यही शुभ इच्छा होती है कि उसके पुत्र-पुत्रियाँ सुख से जीवन व्यतीत करें। अपनी सन्तानों के उज्ज्वल भविष्य के लिए माँ-बाप क्या नहीं करते। वे पुत्र-पुत्रियों को पढ़ा-लिखाकर बड़ा करते हैं। पुत्र तो कोई नौकरी या व्यापार आदि सँभालकर वृद्ध माता-पिता को सहयोग देते हैं जबकि पुत्रियाँ विवाहोपरान्त भी अपने माता-पिता की खुश-खैराफत पूछने के लिए मायके आती रहती हैं।
हर माँ-बाप यही चाहता है कि उसकी पुत्री का विवाह अच्छे-से-अच्छे घर में हो, जहाँ उसे किसी किस्म की कोई तकलीफ न हो। इसके लिए वर पढ़ा-लिखा, कुशल और समझदार देखा जाता है। उसका कुल खानदान भी देखा जाता है।
जब वरपक्ष की ओर से लड़की के माता-पिता सन्तुष्ट हो जाते हैं तो दहेज इत्या । की बात होती है। अधिकांश युवकों के माता-पिता दहेज के इतने लालची हो । हैं कि कन्या के गुण-अवगुणों एवं उसके कुल खानदान की परवाह न करते। दहेज की मोटी रकम की माँग लड़की के पिता के सामने रख देते हैं।
लड़कियों के माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी बराबर की हैसियत वाले। व्यक्ति के पुत्र से अपनी कन्या का विवाह करें वर्ना बाद में लड़की के साथ बहन दिक्कत आती है। कारण यह है कि अधिक धनवान और प्रतिष्ठित व्यक्तियों की दहेज की माँगे भी ज्यादा होती हैं। यदि उनको उनकी मर्जी के अनुसार दहेज न दिया जाए तो वे लड़की यानि बहू को बहुत परेशान करते हैं। बात-बात पर बहू के माता-पिता के ऊपर ताने करते हैं तथा कुछ तो इतने क्रूर (सास-ससुर)! होते हैं कि वधू को शारीरिक यातना देने से भी नहीं हिचकिचाते। वे पराए घर । की बेटी को मार-पीटकर उसकी बुरी हालत कर डालते हैं। उसके हाथ-पैर तोड डालते हैं, आँख फोड़ डालते हैं तथा उसके चेहरे पर तेजाब फेंक देते हैं। इससे भी उनके मन की कसर पूरी नहीं हो पाती तो बहू को रसोई में बंदकर के मिट्टी का तेल उसके ऊपर छिड़क देते हैं और माचिस की तीली जलाकर उसके शरीर में आग लगा डालते हैं। हमारे देश में आए दिन बहुओं के साथ ऐसी दुर्घटनाएँ होती रहती हैं।
कानून में दहेज लेना एक अपराध माना गया है तथा दहेजलोभियों के लिए कानून में दण्ड का भी प्रावधान है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498 A के अन्तर्गत यदि किसी स्त्री का पति या पति का कोई रिश्तेदार (सास-ससुर आदि) स्त्री के साथ निर्दयता का या क्रूरता का व्यवहार करता है। तो अपराधी पाए गए व्यक्तियों को तीन साल की कैद एवं जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा। इस तरह का क्रूरतापूर्ण व्यवहार दहेज के कारण भी किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार धारा 498 A एक नये अपराध का सृजन । करती है जिससे हमारी अपराध विधि पूर्व में परिचित नहीं थी। रामाज में आये दिन विवाहित स्त्रियों को दहेज हेतु परेशान करने तथा बढ़ती दहेज-हत्याओं पर रोक लगाने हेतु यह नई धारा जोड़ दी गई है। इसके अन्तर्गत निश्चित या क्रूरता शब्द को एक नया आयाम दिया गया है ताकि समाज में दहेज प्रताड़नाओं को दण्डित किया जा सके।
आज की पढ़ी-लिखी नारी अपने कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति जागरूक है। उसे मनमाने ढंग से दहेज की आग में नहीं झोंका जा सकता। वह ऐसे पति या सास-ससुर को पसन्द नहीं करती जो दहेज के लोभी हों।
दहेज-प्राप्ति की इच्छा वस्तुतः धन की भूख है। कठोनिषद् के अनुसार धन से धन की भूख कभी तृप्त नहीं होती बल्कि बढ़ती है।
न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः
अर्थात् धन से मनुष्य कभी तृप्त होने वाला नहीं है।
जब हमारे देश के युवक-युवतियों के मन में दहेज-विरोधी भावना पैदा होगी तभी दहेज के अभिशाप से हमारे समाज को छुटकारा मिल सकता है।