दहेज प्रथा एक अभिशाप
Dahej Pratha ek Abhishap
निबंध नंबर : 01
जो लोग अपने पुत्र की शादी में दहेज पूरा न मिलने के कारण वधू पर अत्याचार करते हैं-वे इन्सान या मानव नहीं, शैतान हैं। हमारे गौरवशाली भारतदेश के लिए दहेज की कुप्रथा एक रीति या परम्परा नहीं बल्कि अभिशाप बन चुका है। शिष्ट मानव समाज की दहेज अशिष्ट प्रथा है।
दहेज के अभिशाप का एक पहलू वधू को शारीरिक तथा मानसिक प्रकार की यातनाएँ देना है। वधू के साथ जब दहेज कम आता है तो ससुराल पक्ष के लोग छोटी-छोटी बात को लेकर घर में कलह पैदा करते हैं, बहू के माता-पिता को ताने देते हैं। दहेज पाने की इच्छा में नव बहू को उसके पति से बोलने नहीं दिया जाता। उसे काफी मारा व पीटा जाता है। वधू अपनी ससुराल से रोती सिसकती हुई एक अंधकारमय भविष्य लेकर मायके में लौटती है। बाद में उसके मायके वालों पर भी झूठा मुकदमा चलाया जाता है।
दहेज की समस्या के कारण हमारे समाज में बालक के जन्म को शुभ का प्रतीक माना जाता है जबकि बालिका के जन्म को अशुभ और विपत्ति का सूचक माना जाता है। जब किसी के घर पुत्र पैदा होता है तो उस घर में खूब बधाइयाँ गाई जाती हैं तथा मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं और जब पुत्री पैदा होती है तो घर के अन्दर मातम सा छा जाता है। पुत्री पैदा होने की खबर सुनते ही माता-पिता इस कदर चिन्ताग्रस्त एवं गम्भीर हो जाते हैं मानो उन्होंने साक्षात् काल या यमराज के आने की खबर सुन ली हो।
विष्णुशर्मा पंचतन्त्र में लिखते हैं–
“पत्रीति जाता महतोति चिन्ता, कस्मै प्रदेयेति महान वितर्कः ।।
दत्त्वा सुख प्राप्स्यति वा न वेति, कन्यापितृत्वं खलु नाम कष्टम् ॥”
अर्थात् पुत्री उत्पन्न हुई—यह बड़ी चिन्ता है। यह किसको दी जाएगी और देने के बाद भी यह सुख पाएगी या नहीं यह बड़ा वितर्क रहता है? कन्या का पिता होना निश्चय ही कष्टपूर्ण होता है।
दहेज के अभिशाप के दूरगामी परिणाम बच्चियों के माता-पिता के मस्तिष्क पर पड़ते हैं। चूंकि लड़की की शादी करके, दान दहेज देकर उसे विदा करना ३- यह सोचकर कुछ माता-पिता अपनी कन्या की बचपन से ही परवरिश करने में लापरवाही बरतते हैं। वे लड़कों को तो खाने-पीने के लिए दूध, दही, मक्खन, बिस्कट, मिठाई, मेवा, फल इत्यादि अधिक चीजें देते हैं लेकिन लड़कियों को इन चीजों का बहुत थोड़ा भाग देते हैं जिससे लड़कियों के मन में हीनता की भावना पैदा हो जाती है।
पुत्र चाहे कैसा भी कपूत या बिगड़ा हुआ क्यों न हो लेकिन माँ-बाप उसको लेकर कभी दुःखी नहीं होते। वे पुत्र की कमी-कमजोरियों और शैतानियों को नजर अंदाज कर जाते हैं जबकि पुत्री के कुशल, योग्य एवं होशियार होते हुए भी उन्हें घर में उचित सम्मान नहीं देते। पुत्र चाहे दिनभर आवारा लड़कों के साथ बाहर घूमता रहे, लेकिन माता उसे जरा भी डाँटती फटकारती नहीं है लेकिन पुत्री के जरा-सा बाहर निकल जाने पर उसकी जान की दुश्मन बन जाती है। पुत्री की हर चाल-चलन पर बड़ी गहराई से निगाह रखी जाती है। उसके हर कदम को शक की निगाह से देखा जाता है। माँ-बाप के लिए पुत्र स्नेह का पात्र होता है। जबकि पुत्री, इनके कोप या गुस्से को सहने वाली होती है। पुत्र को योग्य न होते हुए भी माँ-बाप का असीम प्यार दुलार तथा लाड़ मिलता है जबकि पुत्री को अपने माता-पिता तथा बड़े भाइयों से ताड़ना, तिरस्कार, अवहेलना और अपेक्षा भरा अभिशप्त जीवन ही मिलता है।
दहेज न मिलने पर वधू को जली-कटी सुनाना, बद्दुआ देना, झूठे अभियोग लगाना, मिथ्या दोषारोपण करना, कलहपूर्ण वातावरण बनाना, जीवन को प्रतिकूल पास्थितियों का निर्माण करना तथा वधू को आत्महत्या के लिए प्रेरित करना पहज प्रथा का अभिशाप है। दहेज के अभिशाप के कारण ससुराल पक्ष के लोग वधू की जमकर पिटाई करते हैं, उसका अंग भंग कर देते हैं, उसे जिन्दा जला देते है या अन्य किसी तरीके से उसे मौत के मुँह में धकेलने तथा पिता के घर जीवन जीने को विवश कर देते हैं।
लड़की के माता-पिता कर्जा लेकर वरपक्षवालों की दहेज की माँग को पूरा करते हैं। वे अपनी चल अचल सम्पत्ति को बेचकर और गहनों को गिरवी रखकर दहेज चकाते हैं और सारी जिन्दगी उस कर्ज को पटाने में तिल-तिलकर अपनी जिन्दगी को कर्मरूपी नर्क में झोंक देते हैं।
दहेज के अभिशाप के कारण सृष्टि को जन्म देने वाली नारी का अपमान होता है, उसे तिल-तिलकर नर्क की अग्नि में जलना पड़ता है या फिर जीते जी दहेज की बलिवेदी पर चढ़ जाना पड़ता है। दहेज के अभिशाप से वर और वधू दोनों के घर बिगड़ते हैं और दोनों ही पक्ष के लोग कलंकित होते हैं।
निबंध नंबर : 02
दहेज प्रथा एक अभिशाप
Dahej Pratha ek Abhishap
भूमिका- जीवन और गृहस्थ रूपी रथ के दो चक्कर हैं, और दोनों यथा शक्ति भार वहन करते हैं। इन दोनों के संतुलन में जीवन का सौन्दर्य और सुःख छिपा हुआ है। अतः प्रत्येक दृष्टि से नारी जीवन संघर्ष में, जीवन यात्रा में, सहयात्री में, सहचरी है। दहेज शब्द अरबी भाषा के ‘जहेज’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘सौगात’। संस्कृत ‘दायज’ शब्द मिलता है जिसका अर्थ है उपहार पर दान मेक्सरे डिलने दहेज को स्पष्ट करते हुए लिखा है-साधारणतया दहेज वह सम्पत्ति है जो एक व्यक्ति विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष से प्राप्त करता है।
प्राचीन काल में भी लोग अपनी पुत्री को दान दिया करते थे ताकि उनकी कन्या अपना गृहस्थ जीवन आरम्भ करते समय किसी भी प्रकार की परेशानियों का सामना न करें। वर्तमान युग में दहेज अभिशाप बन गया है जो कन्या के जन्म लेते ही माता-पिता को पीड़ित करता है।
दहेज का अर्थ व इसका आरम्भ- दहेज का अर्थ है, विवाह के समय दी जाने वाली वस्तुएं। हमारे समाज में विवाह के साथ लड़की को माता-पिता का घर छोड़ कर पति के घर जाना होता है। इस अवसर पर अपनी पुत्री के प्रति स्नेह प्रकट करने के लिए कन्या पक्ष के लोग लड़की-लडके तथा उनके सम्बन्धियों को यथाशक्ति भेंट दिया करते हैं। यह प्रथा कब आरम्भ हुई- इसके प्रति कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन आधुनिक युग में इस प्रथा ने। विकराल रूप धारण कर लिया है।
आधुनिक युग में दहेज एक अभिशाप- कन्या का जन्म पुरुष प्रधान समाज में केवल दु:ख का कारण माना जाता रहा है। उसके जन्म से ही उसे ‘पराया धन’ कहा जाता है। लडके के जन्म को शुभ माना जाता है आर लड़का के जन्म को अशुभ। कालीदास ने ‘अभिज्ञान शकन्तलम’ में लिखा है कि कन्या का पिता होना कष्टकारक हाता हा कन्या का पराइ वस्तु कहा है। वह धरोहर है जिसे पिता पणिग्रहण करके सौंप देता है। जिस प्रकार बैंक अपने पास जमा का गइ राशि का ब्याज सहित चकाता है, उसी प्रकार पिता भी धरोहर (कन्या) को सद (दहेज) सहित लाटाता है।
विकृत रूप- दहेज आज फैशन और प्रतिष्ठा का रूप ले रहा है तथा भयानक दानव बनकर मासूम निर्दोष लडकियों को निगल रहा है। प्रतिदिन पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में दहेज में पर्याप्त रूप से धन न मिलने पर या अधिक माँग पूरी न होने पर सास, ससुर, ननद और देवर तथा पति द्वारा लड़की पर होने वाले कर अत्याचारों का वर्णन मिलता है। स्टोव का फटना, आग लगना, गैस सिलण्डर से जलना ये घनाएं केवल नव विवाहिताओं के साथ ही होती हैं। दहेज की कलह के कारण लड़की का जीवन नरक बन जाता है और तलाक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
दहेज प्रथा रोकने के उपाय- इस प्रथा को रोने के लिए केन्द्रीय सरकार ने सन् 1961 में दहेज निरोधक अधिनियम बनाया तथा सन् 1985 को इसी प्रकार का नियम बनाया गया। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार का दहेज विवाह में नहीं देगा। यदि कोई व्यक्ति किसी भी रूप में दहेज देता हुआ पकड़ा गया तो उसे कैद एवं जुर्माने की सजा भी हो सकती है।
नवयुवक आगे आएं- दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए स्वयं नवयुवकों को आगे आना चाहिए। नवयुवक अपने माता-पिता, सम्बन्धियों और अपने इधर-उधर के लोगों मेंयह धारणा व्याप्त करे कि शादी होगी तो बिना दहेज के होगी। नवयुवकों को चाहिए कि वे दहेज लोभियों का डटकर विरोध करें।
उपसंहार- दहेज कुप्रथा किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र तथा इतिहास और संस्कृति के लिए ही कलंक है। देश के प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह इस कार्य में सहयोग दें ताकि इससे देश पर लगा कलंक का टीका धोया जा सके। अब समय आ गया है कि हम इस कुरीति को समूल उखाड़ फेंकें।