Hindi Essay on “Bharat me Garibi ki Samasya”, “भारत में गरीबी की समस्या ”, Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

भारत में गरीबी की समस्या 

Bharat me Garibi ki Samasya

आर्थिक विकास किसी भी राष्ट्र की वास्तविक प्रगति का सूचक है। यदि किसी देश की आर्थिक स्थिति मजबूत हो तो वह देश समृद्ध और विकसित देशों की श्रेणी में आ जाता है।

भारत में आजादी के बाद से ही गरीबी उन्मूलन के लिए सभी सरकारों ने कार्य किए और इसे मुख्य लक्ष्य भी माना। हालांकि सन 1970 से इस दिशा में काफी सफलता भी मिली है। विकास दर भी बढ़ी है, जिससे गरीबी में भी सुधार हुए हैं। लेकिन इस सबके बावजूद भारत में गरीबी की स्थिति आज गंभीर बनी हुई है। गरीबी दर में भले ही कमी हुई हो लेकिन वास्तविक गरीबों की संख्या में वृद्धि हुई है। 1993-94 में भारत का प्रत्येक तीसरा व्यक्ति गरीब था। अब देश में गरीबों की संख्या 32 करोड़ से ऊपर है जो आज अफ्रीकी देशों से भी ज्यादा है। 1950 से 1990 के बीच यह दर अस्थिर रही और 45.6 प्रतिशत से 34 प्रतिशत हो गयी। भारत में गरीबी मुख्यतः गाँवों में अधिक दिखाई देती है। तीन-चौथाई गरीब देश के ग्रामों में रहते हैं। पिछले 25 वर्षों से शहर और ग्राम के बीच गरीबी लगभग एक समान बनी रही और हर राज्य से दर भिन्न-भिन्न है। आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में यह केवल 0.5 प्रतिशत से ही कम रही। केरल, आंध्रप्रदेश, गुजरात और पश्चिम बंगाल गरीबी की दर घटाने में आगे रहे जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश इसमें पिछड़ गये।

लेकिन 1990 के दशक से गरीबी की दर बहुत धीमी पड़ गयी। 1993-94 से 1997 के बीच केवल एक प्रतिशत कम हो कर 3 प्रतिशत हो गयी। लेकिन सकल घरेलू उत्पाद 7.5 प्रतिशत वार्षिक से कम नहीं हआ। जिसके कारण गरीबी धीमी दर से घटी।

यदि मुद्रा स्फीति की दर बढ़ती है तो गरीबी की दर में भी वृद्धि हो जाती है। 90 के दशक में मुद्रा स्फीति की दर अपेक्षाकृत अधिक रही। परिणामस्वरूप खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ गयी और गरीबी कम होने की दर में कमी आ गयी। 90 के दशक में गरीबी में आयी कमी के पीछे कृषि विकास महत्वपूर्ण रहा था। भले ही 1990 के दशक में विकास की औसत दर अच्छी रही। लेकिन दैनिक वेतनमानों की वृद्धि की गति अच्छी नहीं रही। जबकि गरीबी कम करने के लिए वेतनमानों में वृद्धि होना जरूरी था।

राज्यों की विषमताओं को ध्यान में रखकर गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में सफलताओं का अवलोकन करना चाहिए। पहले भी बताया जा चुका है कि 1970 के बाद अनेक राज्यों में गरीबी की दर में तेजी से कमी आयी सिवाय उत्तर प्रदेश और बिहार के। लेकिन 1990 से 1997 तक राज्यों के बीच गरीबी असमानता की दर में 18 प्रतिशत तक वृद्धि हो गयी। गरीबों का प्रतिशत भी बढ़ गया। लेकिन 90 के दशक में, आर्थिक उदारीकरण का लाभ इन पिछड़े राज्यों को नहीं मिल पाया और ये अग्रणी राज्यों से बराबरी नहीं कर सके। अत: इसका अर्थ यह हुआ कि न तो सही विकास हो पाया है और न ही गरीबी की दर में गिरावट आयी है।

इस प्रकार, 34 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे आती हैं। यह प्रतिशत देश के विकास में बाधक सिद्ध हो रहा है। जिसे दूर करने के लिए एक कारगर रणनीति बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए साक्षरता दर को बढ़ाने पर बल देते हुए 3 करोड़ से ऊपर गरीब बच्चों का तुरन्त स्कूलों में दाखिला करना होगा। इसके साथ ही देश को आर्थिक सामाजिक व राजनैतिक रूप से मजबूत बनाना होगा। इतना ही नहीं, आर्थिक संस्थाओं का गठन कर उनकी सिफारिशों को पूरी तत्परता के साथ लागू करना होगा। वस सुधारों के दूसरे चरण में ‘पाँचवें वेतन आयोग’, ‘दसवें वित्त आयोग’ और ‘नरसिम्हन समिति’ आदि ने अपने-अपने सुझाव पेश किये हैं।

लेकिन दूसरे चरण के सुधारों में, सामाजिक क्षेत्र को ध्यान में रखना होगा। सरकार को चाहिए कि वह प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान दें और इन्हें प्रत्येक नागरिक के लिए उपलब्ध कराए।

सरकार को चाहिए कि विभिन्न क्षेत्रों में दी जाने वाली. अनुत्पादक आर्थिक सहायता में कटौती करके आम लोगों के जन-जीवन व सुविधाओं में व्यय करें। जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य, और आधारभूत ढांचों आदि के विकास स्तर में बढ़ोतरी हो सकें। अनेक राज्यों में तो इसको लेकर कार्य शुरू भी हो चुके हैं।

सरकार को शासन प्रणाली में भी सुधार करने चाहिए, जिससे सभी सरकारी अंग सुचारू रूप से एकजुट होकर आम आदमी के जीवन में सुधार लाने के लिए कार्य करें।

कृषि का क्षेत्र मुक्त कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करना चाहिए। विदेशी निवेश के लिए सकारात्मक वातावरण तैयार करना चाहिए। इससे विकास दरों में उछाल आयेगा और गरीबी की दर भी कम होगी।

पूर्ण विकास के लिए देश के आधारभूत ढाँचे का सुदृढ़ होना अनिवार्य है। इसके लिए निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमियों की भागीदारी की आवश्यकता है। अतः इस तरह देश की अर्थव्यवस्था सुचारू रूप से चलने लगेगी तथा देश आर्थिक प्रगति की राह पर अग्रसर हो सकेगा।

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