एक कहानी की समीक्षा
Ek Kahani Ki Samiksha
कहानी संग्रह’ की समीक्षा पिछले दिनों मैंने एक कहानी-संग्रह पढ़ा। इस कहानी-संग्रह का नाम ‘बुद्ध का काँटा’ था। इसके संपादक थे श्री बलराम इसमें श्री चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी की तीन कहानियाँ संकलित हैं: बुद्ध का काँटा, उसने कहा था और सुखमय जीवन। कुछ आलोचक मानते हैं कि गलेरी जी की पहली कहानी ‘उसने कहा था’ नहीं थी बल्कि ‘घंटाघर’ थी। यह कार्लाइल की एक रचना से प्रेरित
गलेरी जी की बहुपठित कहानी ‘उसने कहा था’ है। यह 1915 में लिखी गई थी। इसमें अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति से छटपटाते भारतीय युवक की उदारता और वीरता का चित्रण किया गया है। वह युवक लहनासिंह है। उसका बलिदान आज के युवकों को प्रेरणा देता है। उसने कहा था’ ऐसी कहानी है जिस पर उपन्यास लिखा जा सकता था। इस कहानी का कथावस्तु लंबा है। लेकिन जिज्ञासा और उत्सुकता के कारण पाठक इसे पूरी पढ़कर ही उठता है। भाषा में आंचलिकता है और संवादात्मकता है। कहानी को संवादात्मकता इसकी शक्ति है। कहानीकार आज के युवकों को संदेश देता है कि अपने देश पर हँसते-हँसते कुर्बान हो जाना चाहिए। ‘बुद्ध का काँटा’ उनकी दूसरी प्रसिद्ध कहानी है। ‘बुद्ध का काँटा’ का कथानक उसी तरह भव्य है जिस तरह “सुखमय जोवन’ और ‘उसने कहा था’ का। नगेन्द्र जी ‘बुद्ध का काँटा’ को ‘सखमय जीवन’ से अच्छी कहानी मानते हैं। ‘सुखमय जावन’ कहानी में गुलेरी जो ने ऐसे युवक की पोल खोली है जिसे दांपत्य जीवन का थोड़ा भी अनुभव नहीं है। ‘बुद्ध का काटा एसे विद्यार्थी की कहानी है जिसे संसार की वास्तविकता का तनिक भी ज्ञान नहीं है। इसकी नायिका भागवती और नायक रघुनाथ है। इनकी परस्पर नोंक-झोंक, छेड़छाड़ कहानी को अलग रंग देती है। इस कहानी में नायक का चुलबुलापन भी है और ग्रामीण सौन्दर्य भी। इन कहानियों में कला और लेखन के श्रेष्ठतम आयाम हैं। हिंदी साहित्य में ये तीनों कहानियाँ मील की पत्थर हैं।