Bechara Bachpan “बेचारा बचपन” Essay in Hindi, Best Essay, Paragraph, Nibandh for Class 8, 9, 10, 12 Students.

बेचारा बचपन

Bechara Bachpan

आज एकल परिवारों का जमाना है। माता-पिता और उनके बच्चे-यही परिवार की कल्पना है। संयुक्त परिवार धीरे-धीरे सिमटते जा रहे हैं। पहले एक बच्चा दुनिया में आता था तो उसे दादा-दादी, बुआ, चाचा, ताऊ सभी रिश्तेदार स्वागत करते मिलते थे। इतने सारे अपनों का प्यार पाकर वह फलता था, फूलता था। मन प्रसन्न रहता था, पेट भरा रहता था। चारों ओर खुशियाँ किलकारियाँ भरती जान पड़ती थीं। दुर्भाग्य से आज संयुक्त परिवार नहीं रहे। एकल परिवार भी सिमट कर दो बच्चों तक सीमित हो गए। उस पर भी कोढ़ में खाज यह कि माता-पिता दोनों कमाने लगे। अत: घर में बचा खालीपन, सनी दीवारें और सन्नाटा। बच्चा किससे बोले, किससे लाड़ लड़ाए? माता को ऑफिस जाना है, अत: उसके पास लोरी देने का वक्त नहीं, खाना बनाने का वक्त नहीं, यहाँ तक कि अपना दूध पिलाने का भी वक्त नहीं। बचपन बिल्कल बेचारा हो गया है। माता-पिता के जाते ही घर बंद हो जाता है। गली-मुहल्ले में भी खेलने की आजादी नहीं। न पड़ोस है, न विश्वास; आसपास न अपने है, न मित्र। बेचारे बच्चे बेचारे हो जाते हैं। वे खुलकर साँस लेने को भी तरस जाते हैं। बौखलाए हुए माता-पिता अपने बच्चों को जल्दी ही सयाना बना देना चाहते हैं। इसलिए वे जल्दी-से-जल्दी उन्हें किसी स्कूल में डाल देते है। स्कूल में डालना एक जिम्मेदारी है। बच्चे इस बोझ को नहींउठाना चाहते। परंतु मरता क्या न करता। वे जैसे-तैसे बोझ उठाना सीख जाते हैं। तभी कहा जाता है-हाय। बेचाराबचपन

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