Anju Bobby George, अंजू बॉबी जॉर्ज – Biography, Birth, Achievements, Records, Career Info, Age, Complete Essay, Biography, Paragraph in Hindi.

अंजू बॉबी जॉर्ज

Anju Bobby George

 

जन्म : 19 अप्रैल, 1977 जन्मस्थान : चीनचीरा (केरल) सितम्बर 2003 में पेरिस में हुई वल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में अंजू बी. जॉर्ज ने लंबी कूद में कांस्य पदक जीत कर भारत को प्रथम बार विश्वस्तर की प्रतियोगिता में पुरस्कार दिलाया। अंजू बी. जॉर्ज वर्ष 2008 में 25 वर्ष की उम्र में विश्व एथलेटिक्स में भारत की प्रथम पदक विजेता बनी। एक नज़रिये से देखा जाए तो अंजू का प्रदर्शन भारतीय एथलेटिक्स को नई दिशा देने की पहल है। इससे पहले भारत का नाम एथलेटिक्स में जरा-सी चूक के लिए जाना जाता था। 2004 में अंजू बॉबी जॉर्ज को ‘राजीव गांधी खेल रन’ सम्मान प्रदान किया गया।

अंजू का जन्मस्थान दक्षिण मध्य केरल के छोटे-से कस्बा कोट्टायम के ज़िले में चीरनचीरा है। वह बचपन में सेंट एनी गर्ल्स स्कूल चंग ताचेरी में पढ़ती थी। उसने पांच वर्ष की उम्र में एथलेटिक्स स्पर्धाओं में भाग लेना शुरू कर दिया था। उसकी मां ग्रेसी तथा पिता के. टी. मार्कोस ने अपनी बेटी के एथलेटिक्स की दिशा में बढ़ते कदमों में रुचि लेकर उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उसके पिता का फर्नीचर का व्यवसाय है।

अंजू के स्कूल ने उसके लिए कूद थ्रो और दौड़ने के लिए अलग से कार्यक्रम बनाकर उसे अभ्यास के लिए पर्याप्त मौका दिया। इसके बाद अंजू सी. के. केश्वरन स्मारक हाई स्कूल कोरूथोडू चली गई। वहां सर थॉमस ने उसकी कला को चमकाया और तब अंजू ने स्कूल को लगातार 13वें साल ओवरऑल खिताब दिलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। यहां उसने ऊंची कूद, लम्बी कूद, 100 मी. दौड़ और हैप्थलॉन आदि सभी खेलों की प्रैक्टिस की। उसका आदर्श पी. टी. उषा थीं।

1960 में मिल्खा सिंह ने रोम ओलंपिक में दौड़ में विश्व रिकार्ड बनाया फिर भी पदक पाने से चूक गए। 1976 में श्रीराम सिंह मांट्रियल में राष्ट्रीय रिकार्ड बनाने के बावजूद सातवें स्थान पर रह कर पदक पाने से चूक गए, इसी प्रकार गुरबचन सिंह रंधावा भी चूके। 1984 में एंजिल्स में पी.टी. उषा एक मिनट के सौवें हिस्से से पदक पाने से चूक गई।

परन्तु सितम्बर 2003 में पेरिस में हुई वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में अंजू बी. जॉर्ज ने लंबी कूद में कांस्य पदक जीत कर भारत को प्रथम बार विश्व-स्तर की प्रतियोगिता में पुरस्कार दिलाया। अंजू ने इस स्तर तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की। उसके पति राबर्ट बॉबी जॉर्ज उनके कोच हैं जिनके नाम लंबी कूद का विश्व रिकार्ड है। अंजू के घर और ससुराल दोनों जगह खेल का माहौल है। पति बॉबी जॉर्ज ने अंजू के लिए अपना ट्रिपल जंप में कैरियर छोड़ दिया ताकि वह पूरा समय अंजू की कोचिंग में लगा सके। अंजू कहती है कि वह आज जहां है अपने पति की वजह से है।

विश्व एथलेटिक्स में पदक जीतने पर अंजू ने कहा- “देश के लिए पदक जीतकर तथा दुनिया में देश का नाम रोशन करने पर मैं गर्व महसूस कर रही हैं और अपने इस पदक को मैं राष्ट्र को समर्पित करती हूं।”

अंजू का प्रदर्शन इस मायने में भी सराहनीय कहा जा सकता है कि इस वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 210 देशों ने भाग लिया और अंजू ने उन प्रतियोगियों के बीच पदक प्राप्त किया। यह किसी भारतीय एथलीट द्वारा किया गया सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था।

अंजू ने अपनी सफलता का राज़ बताते हुए कहा-आप जो भी कर रहे हैं, उस पर भरोसा होना चाहिए। जब लगभग गरीब देश पदक जीत सकते हैं। तो भारत क्यों नहीं? अगर मैं भारत में 6.74 मीटर की छलांग दो बार लगा सकती हूं तो आप भी ऐसा कर सकते हैं।

अंजू मार्कोस (विवाहपूर्व नाम) को 1999 में लगा था कि अब वह कभी नहीं खेल पाएगी । उसको खेल जीवन समाप्ति की ओर लगने लगा था। जब दक्षिण एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उसने रजत पदक जीतने के साथ ही टखने में गहरे जख्म का सामना किया। इस चोट के कारण वह सिडनी ओलंपिक (2000) में भाग नहीं ले सकी और दो वर्ष तक उसे खेलों से भी दूर रहना पड़ा।

2001 में अंजू पुनः उभरी और 6.74 मीटर लम्बी कूद का रिकार्ड कायम किया। लेकिन विमला कालेज, त्रिचूर में आते ही उसके कैरियर को एक दिशा मिली और उसका नाम राष्ट्रीय स्तर पर उभरा। इसी दौरान उसका चयन राष्ट्रीय जुड़ी। कोचिंग कैम्प में हुआ। इसके बाद 1998 में रेलवे छोड़ कर चेन्नै कस्टम्स से।

इसके बाद अंजू ने भारत के ट्रिपल जंप के राष्ट्रीय चैंपियन राबर्ट बॉबी जॉर्ज से मदद ली। बाद में उन्हीं के साथ अंजू ने विवाह कर लिया। अंजू ने मैनचेस्टर में राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य-पदक जीतकर अन्य दिग्गज भारतीय खिलाडियों के बीच अपनी पहचान बनाई। यह पदक प्राप्त करने वाली वह भारत की पहली महिला एथलीट थी। यहां उसने 6.49 मीटर लम्बी छलांग लगाई।

इसके बाद बुसान एशियाई खेलों में उसने स्वर्ण पदक जीता और अपनी श्रेष्ठता की छाप छोड़ी। यहां उसने 6.53 मीटर की छलांग 1.8 मीटर प्रति सेकंड की हवाई रफ्तार से लगाई। तत्पश्चात् अंजू ने दुनिया के जाने-माने एथलीट माइक पावेल से टेनिंग ली। उन्होंने अंजु को अमेरिका में कड़ी ट्रेनिंग दी। अंजु का अधिकतम रिकार्ड 6.74 मीटर लंबी कूद का है। उसकी दुनिया में 13वीं रैंकिंग है और उसे विश्व चैंपियनशिप के लिए सातवीं रैंकिंग मिली थी।

30 अगस्त, 2003 को पेरिस की वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में अंजू ने 6.70 मीटर की छंलाग लगा कर कांस्य पदक हासिल किया। इसके पूर्व भारतीय खिलाड़ी सीमा अंतिल ने भी विश्व जूनियर एथलेटिक्स में पदक जीता था परन्तु डोप टेस्ट में उसका टेस्ट सकारात्मक (पॉज़िटिव) पाए जाने पर उसका पदक वापस ले लिया गया था। अतः इस स्तर की सफलता केवल अंजू को ही मिल सकी है।

लंबी कूद के विश्व रिकार्डधारी खिलाड़ी और अंजू के कोच पॉवेल का अंजू की सफलता में बड़ा हाथ है। पॉवेल स्वयं लम्बी कूद के विश्व रिकार्ड विजेता रहे हैं। उन्होंने 1991 में टोकियो में 8.95 मीटर की स्वर्णिम छलांग लगाकर विश्व रिकार्ड बनाया था।

भारतीय ओलंपिक संघ और सैमसंग इंडिया लिमिटेड ने मिलकर एथेंस में होने वाले 2004 के ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों को स्पांसर करने का निर्णय लिया। सैमसंग ने एक ओलंपिक फंड शुरू किया जिसने भारत के टॉप एथलीट्स को स्पांसरशिप प्रदान किया। इन प्रमुख पांच खिलाड़ियों में अंजू बी. जॉर्ज का नाम भी शामिल था। इस फंड द्वारा खिलाड़ियों के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं व ट्रेनिंग की व्यवस्था की गई थी।

मार्च 2008 में अंजू की ट्रेनिंग माइक पावेल के निर्देशन में शुरू हुई थी। जो एथेंस ओलंपिक तक जारी रही। अंजू के खेल स्तर में काफी सुधार हुआ। है। यहां तक कि अमेरिका की एक खेल प्रबंधन कम्पनी, हिज का ध्यान अंजू की ओर आकर्षित हुआ और वह अंजू को लेकर ओलंपिक 100 मी. दौड़ के स्वर्ण-पदक विजेता मौरिस ग्रीन, एलेन जॉनसन आदि खिलाड़ियों के पास गई। इनसे सम्पर्क होने का अर्थ ही सबसे अच्छे प्रदर्शन के अवसर प्राप्त होना है।

बीच में कुछ समय आया था, जब खिलाड़ियों की कूद का रिकार्ड 7 मीटर से अधिक हो गया था परन्तु डोप टेस्ट के बाद ये आंकड़े सामान्य स्तर तक आ गए। अंजू विश्व के सर्वश्रेष्ठ आठ खिलाड़ियों में से एक रही है। अतः आशा थी कि एथेंस ओलंपिक में वह अवश्य कोई पदक जीत कर भारत का नाम रोशन करेगी।

मई 2004 में अपने प्रशिक्षण के दौरान अंजू ने अपनी क्षमता बढ़ाते हुए 6.9 मीटर की छलांग लगाई। तब अंजू के प्रशिक्षक पति का कहना था कि अगस्त 2004 में होने वाले ओलंपिक तक अंजू 7.20 मीटर कूद सकेगी। इस वक्त अंजू विश्व की चौथे नम्बर की एथलीट बन गई।

13 अगस्त, 2004 को शुरू होने वाले एथेंस ओलंपिक में भारतीय ध्वजवाहक का सम्मान अंजू जॉर्ज को दिया गया। पहले ध्वजवाहक के लिए कर्णम मल्लेश्वरी का नाम सबसे ऊपर था। इसके अतिरिक्त लिएंडर पेस, धनराज पिल्लै व अंजलि भागवत का नाम भी इस सूची में शामिल था। लेकिन अंततः भारतीय टीम का नेतृत्व व ध्वजवाहक का सम्मान अंजू बॉबी जॉर्ज को दिया गया।

अंजू से समस्त भारतवासियों की आशा थी कि वह भारत को पदक अवश्य दिलाएगी। अंजू ने कुल 30 खिलाड़ियों के साथ लम्बी कूद में हिस्सा लिया और 6.69 मीटर की लम्बी छलांग लगाकर फाइनल में प्रवेश किया। फाइनल में पहुंचने के लिए कम से कम 6.65 मी. छलांग लगानी अनिवार्य थी। फाइनल में पहुंचने वाली कुल 12 प्रतियोगी थीं। लेकिन अंत में अंजू कोई भी पदक पाने में असफल रही।

यद्यपि अंजू ने पहले प्रयास में 6.83 मीटर की छलांग लगाकर नया राष्ट्रीय रिकार्ड कायम किया लेकिन रूसी तिकड़ी ने सात से ऊपर की छलांग लगाकर भारतीय उम्मीदें समाप्त कर दीं। अंजू अंत में छठा स्थान ही पा सकी।

वर्ष 2004 में 13 खिलाड़ियों का नाम देश के सर्वोच्च खेल सम्मान ‘राजीव गांधी खेल रत्न’ पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया गया था। लेकिन इनमें से अंजू । का नाम सबसे ऊपर उभर कर आया। इससे पिछले वर्ष पेरिस विश्व चैंपियनशिप । में अंजू को मिले कांस्य पदक के कारण अंजू को पुरस्कार के लिए चुना गया। यह पुरस्कार खिलाड़ियों को पिछले वर्ष की उपलब्धियों के लिए दिए जाते हैं।

उनके कोच पति राबर्ट बॉबी जॉर्ज को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित  किया गया। ये पुरस्कार अंजू व राबर्ट जॉर्ज को 21 सितम्बर, 2004 को राष्ट्रपति के द्वारा प्रदान किए गए। अंजू को पुरस्कार ट्राफी के अतिरिक्त पांच लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया।

वह वर्ष 2005 में कोई बड़ा कमाल नहीं दिखा सकीं। वर्ष 2005 में हीरो दोंडा अकादमी ने एथलेटिक्स में वर्ष 2004 के लिए अंजू को श्रेष्ठतम खिलाड़ी नामांकित किया। वर्ष 2006 में अंजू का प्रदर्शन बिगड़ने से आई.ए.ए.एफ. महिला लम्बी कद रैकिंग में वह चौथे स्थान से लुढ़क कर छठे स्थान पर पहुंच गई।

दिसम्बर 2006 में हुए दोहा एशियाई खेलों में अंजू अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं दोहरा सकीं। उन्होंने 6.52 मीटर की छलांग लगा कर रजत पदक जीतने में सफलता हासिल की। उनका सीज़न का बेस्ट 6.54 मीटर था। वह खुश थी कि आखिर उन्होंने पदक तो जीता। यद्यपि उन्होंने छठवें अंतिम प्रयास में 6. 52 मीटर की छलांग लगाई वरना कज़ाकिस्तान की खिलाड़ी 6.49 की कूद के साथ रजत पदक ले गई होती और अंजू को कांस्य से संतोष करना पड़ता। बुसान एशियाई खेलों में अंजू स्वर्ण जीती थीं।

उपलब्धियां :

  • अंजू विश्व एथलेटिक्स में पदक जीतने वाली प्रथम भारतीय एथलीट हैं। उन्होंने वर्ष 2008 में पेरिस में ‘विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता।
  • 1999 में अंजू ने दक्षिण एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक जीता।
  • 2001 में अंजू ने लम्बी कूद का रिकॉर्ड कायम किया, उन्होंने 74 मीटर लम्बी छलांग लगाई।
  • अंजू की दुनिया में 13वीं रैंकिंग रही है। विश्व चैंपियनशिप के लिए । सातवीं रैंकिंग भी मिल चुकी है।
  • अंजू ने मानचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीता।
  • उन्होंने 2002 में बुसान एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
  • 2004 में हुए एथेंस ओलंपिक में अंजू को ध्वजवाहक का सम्मान प्राप्त 8 2004 में अंजू बॉबी जार्ज को ‘राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान प्रदान किया गया।
  • 2005 में ‘हीरो होंडा अकादमी ने एथलेटिक्स में अंजू को श्रेष्ठतम खिलाड़ी नामांकित किया।
  • 2008 में तीसरी दक्षिण एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

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